Friday 1 March 2013

एडवरटाइजिंग दुनिया का सबसे बेहतरीन पेशा है।

अवस्थी के लिए एडवरटाइजिंग दुनिया का सबसे बेहतरीन पेशा है। वे कहते हैं, यह कम्युनिकेशंस, मानव संसाधन, इतिहास, कला, संस्कृति, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र का मिश्रण है। ओगिल्वी एंड माथर इंडिया में नेशनल क्रिएटिव डायरेक्टर अभिजीत करीबन 450 लोगों की क्रिएटिव टीम का नेतृत्व करते हैं। अभिजीत कहते हैं, एडवरटाइजिंग में मेरा प्रवेश संयोगवश हुआ था, लेकिन वही मेरे लिए सबसे सही रास्ता था। आईटीबीएचयू से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने स्टील प्लांट में काम किया। यह मुझे पसंद नहीं आया और मैंने छोड़ दिया। उसके बाद 1996 तक मैंने अपना हाथ टेक्सटाइल डाइंग, ताश के व माचिस के निर्यात और साड़ियों के व्यवसाय जैसे कामों में आजमाया। अब तक इंजीनियरिंग काफी पीछे छूट चुकी थी और एमबीए की तरफ मेरा झुकाव नहीं था। मैं खुद असमंजस में था कि क्या किया जाए और क्या नहीं। बस एक बात मैं जानता था कि मुझे रचनात्मक ढंग से सोचना पसंद था और मैंने काफी कुछ पढ़ा भी था।

विज्ञापन फिल्म निर्माता प्रसून पांडे और पीयूष पांडे के साथ मिलकर मैं घंटों

आइडिया पर चर्चा किया करता था। एक दिन पीयूष ने मुझे एडवरटाइजिंग में प्रवेश का सुझाव दिया। उनका मानना था कि मेरे पास समृद्ध सोच शक्ति थी जिसका उपयोग मुझे उस क्षेत्र के योग्य बना रहा था। उनकी बात मानकर मैं एंटरप्राइजेज नेक्सस चला गया और वहां मैंने आवेदन किया। जो कुछ मैंने किया वह उन्हें पसंद आया और उन्होंने मुझे रख लिया। मुझे भी यह जगह रास आई।

एडवरटाइजिंग की बहुत सारी खासियतों में से एक खास बात यह है कि यह आपको हर क्षेत्र के अनुभव को काम में लेने की इजाजत देती है। ज्यादातर लोग एडवरटाइजिंग में 20-21 साल की उम्र में आ जाते हैं। मुझे थोड़ी देर लग गई थी, मैं यहां 25-26 साल की उम्र में आया था, लेकिन इतने सालों तक मैंने जो कुछ भी किया उसके मुझे फायदे मिले।

TIME ऑफ इंडिया का ए डे इन दी लाइफ ऑफ इंडिया कैंपेन अभिजीत का पहला असाइनमेंट था। 1999 में अवस्थी क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में ओगिल्वी एंड माथर से जुड़े। फेविकोल, सेंटर शॉक, एशियन पेंट्स व पल्सर जैसे ब्रांड्स के साथ काम कर चुके अभिजीत कहते हैं, एडवरटाइजिंग का क्षेत्र प्रतिभा का पिटारा है। यह एक ऐसा काम है जो आपको बैठकर सोचने के लिए पैसा देता है। यह नौ से पांच की फिक्स नौकरी नहीं है। यह LIfe  का तरीका है। 24 घंटे और सातों दिन लगातार काम करना पड़ सकता है, लेकिन काम के परिणाम जब सामने आते हैं तो वैसी खुशी किसी और पेशे में नहीं मिल सकती।

यहां काम करने वाले पेशेवरों को अपना दिमाग वहां तक ले जाना पड़ता है, जहां तक कोई नहीं पहुंच सकता। जोखिम उठाना पड़ता है, खुद से सवाल करने होते हैं। करीबन 10 साल पहले एड एजेंसी चलाने या वहां काम करने का मतलब था इंजीनियरिंग या मेडिकल के लिए कम अंक होना, लेकिन अब यहां एमबीए, रचनात्मक कॉपीराइटर, आंकड़ों के जीनियस और क्लाइंट सर्विसिंग प्रोफेशनल हैं, जो मई की गर्मियों में भी स्वेटर खरीदने के लिए आपको मना सकते हैं।

ये कुछ ऐसा काम करते हैं, जिसे पढ़ाई की बदौलत सीखना मुश्किल है। आउट ऑफ बॉक्स आइडिया, विजुअल सोच, बेहतरीन संवाद क्षमता और बाजार की स्थिति को भांप लेना जैसे गुण ऐसी काबिलियतें हैं, जो इस क्षेत्र में काम के दौरान आपको हासिल होती हैं। किसी भी कंपनी या संस्थान के अस्तित्व व उन्नति में विज्ञापन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विज्ञापन निर्माताओं के लिए खासा मुश्किल होता है एक जैसे उत्पादों के बीच अपनी जगह बनाना।

ऐसे में उन्हें वे लोग चाहिए होते हैं, जो उपभोक्ताओं की नज पकड़ सकें। यहां कहानियां सुनाने, आइडिया बेचने, उसे स्क्रीन पर उतारने के पैसे मिलते हैं। असल में विज्ञापन मात्र प्रचार या उत्पाद को बेचने का तरीका भर नहीं रह गए हैं, बल्कि वे अपने आप में एक कहानी, संदेश या प्रेरणा होते हैं। ब्रांड चाहते हैं कि उपभोक्ता न केवल उनके उत्पाद को पहचानें, बल्कि उससे एक रिश्ता भी कायम करें। पेप्सी का चेंज दी गेम कैंपेन हो या फिर टाटा स्काई का पूछने में क्या जाता है, कोटक का सुबु सब जानता है, एयरटेल की फ्रेंडशिप सीरीज, हीरो मोटोकॉर्प का हममें है हीरो, कैडबरी डेयरी मिल्क का शुभारंभ विज्ञापन अपने आइडिया के जरिए ब्रांड उपभोक्ता से जुड़ते आए हैं। विज्ञापन पेशेवरों को यही काम करना होता है। इस जुड़ाव में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसीलिए ग्लैमरस दिखने वाला यह क्षेत्र कड़ी मेहनत से भरपूर है। दूसरी अहम बात यह है कि दुनियाभर के सबसे रचनात्मक पेशे एडवरटाइजिंग पर भारत में 30,000 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। दी इंडिया टीवी इंडस्ट्री एक्ट टू रिपोर्ट के अनुसार, 2016 तक भारत, जापान और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा टेलीविजन विज्ञापन  होगा।

15 प्रतिशत की चक्रवर्ती वार्षिक वृद्धि दर के साथ भारत में टीवी विज्ञापन आय 26,325 करोड़ रुपए के आंकड़े को पार करने के लिए ऑस्ट्रेलिया और कोरिया को ओवरटेक करेगी। स्टार इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर संजय गुप्ता के अनुसार, ब्रांड्स के निर्माण में निवेश और एडवरटाइजिंग भारत में मजबूत स्थिति में ही रहेंगे। यहां वृद्धि दर सालाना 12-16 प्रतिशत अनुमानित है। यह तेजी से प्रगति करने वाले क्षेत्रों में से एक है। आईएएमएआई और इंडियन मार्केट रिसर्च यूरो की डिजिटल एडवरटाइजिंग रिपोर्ट बताती है कि 2013 के अंत तक मोबाइल एडवरटाइजिंग 144 करोड़ की हो जाएगी। इसी तरह की बढ़ोतरी अन्य माध्यमों में भी अनुमानित है। ऐसे में यहां प्रवेश करने वालों के लिए भविष्य उज्ज्वल है। बस याल इस बात का रखना है कि यह इंडस्ट्री रचनात्मकता और प्रतिभा की लालची है। अगर आपमें आइडिया सोचने, कहानी सुनाने, हरेक स्थिति को अलग-अलग ढंग से सोचने, कमाल की कल्पनाशक्ति और आंकड़ों से खेलने का हुनर है तो एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री में आपका स्वागत है।


विज्ञापन की अवधारणा सदियों पुरानी है। 981 ईसवी में एरिक दी रेड ने आइसलैंड के पश्चिम द्वीप के सर्वेक्षण के लिए दक्षिणी नॉर्वे को छोड़ दिया था। एरिक ने इस रहस्यमयी जगह की यात्रा की। उन्होंने द्वीप के दक्षिणी किनारे को पूरी तरह खंगाला और पश्चिमी किनारे का सफर भी तय किया। अंतत: वे एक ऐसे किनारे तक पहुंचे, जिसका ज्यादातर हिस्सा बिना बर्फ का प्रतीत हो रहा था और वहां रहने लायक परिस्थितियां भी थीं। एरिक ने यहां तीन साल बिताए। अब वे चाहते थे कि दूसरे लोग भी वहां आएं और रहें, लेकिन इसके लिए उन्हें इस जगह के बारे में बताना जरूरी था। प्रवासियों को नॉर्वे से आइसलैंड लाने के लिए एरिक ने समशीतोष्ण जलवायु, घास के मैदान और हरे-भरे खेतों की तस्वीर तैयार की। इसे संपूर्ण बनाने के लिए एरिक ने इसे ग्रीनलैंड नाम दिया। यह नाम एरिक ने लोगों को यहां आने के लिए आकर्षित करने हेतु रखा था। एरिक जानते थे कि यदि वे कोई ऐसा नाम देंगे तो लोग जरूर आकर्षित होंगे।

जब एरिक लौटे तो वे अपने साथ ग्रीनलैंड की ढेरों कहानियां लाए थे। एरिक की तकनीक ने उन्हें सफल बनाया। लोगों को लगने लगा कि ग्रीनलैंड में समृद्धि है। सैकड़ों की  लोग वहां पहुंचें और रहें। इस तरह एरिक ने एक ब्रांड की रचना की। बेबीलोनिया में भी एडवरटाइजिंग का शुरुआती रूप दिखाई दिया था। वहां क्रायर्स (घोषक या चिल्लाने वाले) का उद्भव हुआ था। 3,000 ईसा पूर्व लोग अपना सामान गलियों में लेकर जाते थे और आवाज लगाते थे। आगे चलकर व्यापारियों ने क्रायर्स को किराए पर रखना शुरू किया, जो तेज आवाज में उनका सामान बेचा करते थे। बेबीलोनिया निवासियों ने आगे चलकर आउटडोर एडवरटाइजिंग का उपयोग किया। किसी भी संस्थान के बाहर साइनबोर्ड लगा दिया जाता था जिस पर व्यापारी के उत्पाद का कच्च चित्रण कर दिया जाता था। सबसे पुराना लिखित विज्ञापन करीबन तीन हजार वर्ष पुराना है। पपाइरस के तने पर भगोड़े गुलामों का विवरण और उन्हें लेकर आने पर इनाम की घोषणा होती थी। 16वीं सदी में मुद्रण मशीनों के आने से अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित होने लगे। उसके बाद टीवी, रेडियो और अखबार, मैग्जीन, इंटरनेट, बिलबोर्ड और आउटडोर ने पूरी तरह विज्ञापन उद्योग को मजबूती दी।
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