Thursday 31 October 2013

डेल के लैपटॉप से बिल्ली के 'पेशाब की गंध'

कई उपभोक्ताओं ने शिकायत की है कि डेल के लैटीट्यूड 6430यू अल्ट्राबुक्स लैपटॉपों से 'बिल्ली के मूत्र की गंध' की आ रही है.
डेल के इंजीनियरों ने लैपटॉप में किसी भी तरह के जैविक पदार्थों की मौजूदगी से इनकार किया है. इंजीनियरों ने यह भी कहा कि इस गंध से किसी तरह से स्वास्थ्य के लिए ख़तरा नहीं है.
डेल कंपनी ने कहा है कि यह समस्या मैन्युफ़ैक्चरिंग प्रक्रिया की गड़बड़ी के कारण है और इसे बदला जा रहा है.
इस समस्या से पीड़ित उपभोक्ता अपना लैपटॉप बदलने के लिए कंपनी को भेज सकते हैं.
उपभोक्ताओं ने डेल के इस सीरीज़ के लैपटॉप के बारे में जून में इस समस्या को उठाया था.
शिकायत
थ्री वेस्ट नाम के एक उपभोक्ता ने डेल के हार्डवेयर सपोर्ट फ़ोरम पर अपनी शिकायत दर्ज कराते हुए लिखा है, "मैंने कुछ हफ़्तों पहले ही अपने काम के लिए लैटीट्यूड 6430यू ख़रीदा है. यह बहुत अच्छा काम करता है लेकिन ये इस तरह महकता है जैसे इसे किसी बिल्ली के पेशाबघर के बगल में बनाया गया है. यह सचमुच बुरा है."
एक अन्य ग्राहक होतेका ने कहा है, "मुझे लगा कि मेरी किसी बिल्ली ने लैपटॉप पर पेशाब कर दिया लेकिन गड़बड़ लैपटॉप में थी इसलिए मैंने उसे बदल दिया. दूसरे लैपटॉप में भी यही समस्या थी."
कई अन्य उपभोक्ताओं ने अपनी बिल्लियों के इस गंध के लिए ज़िम्मेदार माना था.
इस समस्या के सामने आने पर डेल के तकनीकी सहायकों ने उपभोक्ताओं को लैपटॉप के एयर वेंटस की सफ़ाई करने के लिए कहा लेकिन यह करने के बाद भी इस गंध से मुक्ति नहीं मिली.
सितंबर में मैलीओज़ नामक उपभोक्ता ने अंदेशा जताया कि यह गंध लैपटॉप के प्लास्टिक में प्रयोग किए गए पॉलीमर से आ रही है. मोलीओज़ ने कंपनी से पूछा था कि क्या इस गंध से स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या आ सकती है.
हानिकारक
डेल की जांच के अनुसार गंध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है.
डेल के सहायक टेक्नीशियन स्टीवबी ने कहा, "इस गंध का बिल्ली के मूत्र या अन्य किसी जैविक पदार्थ से संबंध नहीं है और न ही इससे स्वास्थ्य को कोई ख़तरा नहीं है."
यह गंध निर्माण प्रक्रिया के दौरान आई है और अब इसे हल कर लिया गया है.
स्टीवबी ने कहा, "अगर अब आप ई6430यू ख़रीदेंगे तो इसमें यह समस्या नहीं आएगी."
डेल ने ग्राहकों को सुझाव दिया है कि उन्हें इस तरह के लैपटॉप को दुरुस्त करने के लिए भेजना चाहिए.

हजार जवानों संग जाएंगे बिहार नीतीश से टूटा मोदी का भरोसा!

पटना के गांधी मैदान में हुई ‘हुंकार रैली’ के बाद मोदी एक बार फिर बिहार दौरे पर जा रहे हैं। मोदी पटना धमाकों में मारे गए लोगों के परिजनों और घायलों से मुलाकात करेंगे। मोदी के बिहार दौरे के मद्देनजर एक एडीजी, 2 डीआईजी, 12 डीएसपी और 1 हजार एसटीएफ के जवान गुजरात से बिहार पहुंच रहे हैं। गांधी मैदान में धमाके होने के बाद मोदी के आज के दौरे को लेकर बिहार पुलिस भी काफी सतर्कता बरत रही है।
बिहार के चीफ सेक्रेटरी ने डीजीपी और होम सेक्रेटरी के साथ बैठक की। सुरक्षा में किसी तरह की चूक ना हो इसके मद्देनजर कई निर्देश दिए गए हैं। इन सभी सुरक्षा के अलावा बिहार बीजेपी की ओर से भारी पैमाने पर प्राइवेट सुरक्षा गार्ड मंगवाए गए हैं। मोदी के आज रात 11 बजे तक पटना पहुंचने की खबर है। वो स्पेशल विमान से पटना जाएंगे। मोदी स्टेट गेस्ट हाउस में रुकेंगे। दोपहर 12 बजे के बाद बिहार पुलिस गेस्ट हाउस की सुरक्षा में तैनात हो जाएगी। तब तक गुजरात पुलिस के लोग भी मोदी की सुरक्षा के लिए पहुंच जाएंगे।

भविष्य का सचिन कोई नहीं विराट कोहली हैं

विराट कोहलीयह सितारा और कोई नहीं विराट कोहली हैं. क्रिकेट पंडितों का मानना है कि दिल्ली का यह युवा बल्लेबाज़ अगर इसी तरह खेलता रहा तो सचिन के कई रिकॉर्डों को पार कर सकता है. खुद सचिन भी मानते हैं कि विराट उनका शतकों का रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं.
विराट ने 118 मैचों में 52.32 के प्रभावशाली औसत से 4919 रन बनाए हैं जिनमें 17 शतक और 26 अर्द्धशतक शामिल हैं. अपने इस शुरुआती करियर में ही विराट कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुके हैं.
टीम इंडिया की रन मशीन विराट ने जिन 17 मैचों में शतक बनाए हैं उनमें से भारत ने 16 में जीत दर्ज की है. विराट ने 11 शतक लक्ष्य का पीछा करते हुए बनाए हैं और वह शानदार 'फिनिशर' बनकर उभरे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ चल रही सिरीज़ में भारत ने दो बार 350 से अधिक रन का लक्ष्य हासिल किया है और दोनों बार विराट के बल्ले से शतक निकले हैं.
भारत ने छह बार 300 से अधिक रन के लक्ष्य को हासिल किया है जिनमें से पांच में विराट ने शतक ठोंके हैं.
क्लिक करें लिटिल मास्टर के नाम से मशहूर सुनील गावस्कर का कहना है, "विराट शानदार खिलाड़ी हैं. अगर आप 115 मैचों के बाद सचिन और विराट के आंकड़ों पर नजर डालें तो विराट सचिन से कहीं आगे हैं."
सचिन को पहला शतक बनाने के लिए 80 मैचों तक इंतजार करना पड़ा था वहीं विराट ने 14वें वनडे में ही यह कमाल कर दिया था. विराट ने नागपुर वनडे में नाबाद 115 रन बनाने के साथ ही लगातार तीसरी बार एक सत्र में 1000 रन भी पूरे कर लिए.
गावस्कर ने कहा, "विराट को शुरुआती वर्षों में सचिन, वीरेन्द्र सहवाग, राहुल द्रविड और वी वी एस लक्ष्मण जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के साथ खेलने का मौका मिला और यह अनुभव उनकी क्रिकेट समझ को बढ़ाने में काम आया है. वह परिस्थितियों को समझते हैं और विपक्षी टीम की रणनीति भी समझ लेते हैं."
जहां तक आंकड़ों का सवाल है तो विराट सबसे तेज़ 15 शतक बनाने वाले अंतरराष्ट्रीय बल्लेबाज़ हैं और सबसे तेज़ी से 4000 रन बनाने वाले भारतीय बल्लेबाज़ हैं.
भारत को अंडर-19 विश्वकप का विजेता बनाने वाले विराट को वनडे के महानतम बल्लेबाज़ माने जाने वाले वेस्टइंडीज के विवियन रिचर्ड्स के सबसे तेज़ 5000 रन बनाने के रिकॉर्ड ध्वस्त करने के लिए अगले वनडे में 81 रन की ज़रूरत है.
क्लिक करें सचिन जब 25 साल के हुए तो उनके खाते में 15 वनडे शतक थे जबकि अगले सप्ताह 25 साल के होने जा रहे विराट 17 वनडे शतक लगा चुके हैं. टीम इंडिया ने जिन मैचों में लक्ष्य का सफलतापूर्वक पीछा किया है उनमें विराट का औसत 86.53 है.
गावस्कर ने कहा, "रिकॉर्ड तो टूटने के लिए ही बनते हैं. लेकिन सचिन के कुछ रिकॉर्ड तोड़ना आसान नहीं हैं. मुझे नहीं लगता है कि कोई 200 टेस्ट खेल पाएगा या 51 टेस्ट शतक लगा पाएगा. लेकिन विराट जिस तरह से खेल रहे हैं उससे लगता है कि सचिन के 49 वनडे शतकों का रिकॉर्ड ख़तरे में है."
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज़ डीन जोंस का भी मानना है कि विराट सचिन को पीछे छोड़ देंगे. उन्होंने कहा, "विराट जिस तरह से खेल रहे हैं, उससे मुझे लगता है कि वह सचिन से आगे निकल जाएंगे."
क्रिकेट में भगवान का दर्जा रखने वाले सचिन के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं और उन तक पहुंचना किसी भी बल्लेबाज़ के लिए आसान नहीं होगा. लेकिन विराट जिस तरह से खेल रहे हैं उससे यह कहा जा सकता है कि वह सचिन के रास्ते पर जा रहे हैं.

भारतीय तिरंगे का इतिहास

"सभी राष्‍ट्रों के लिए एक ध्‍वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान न्‍यौछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है, जिसे नष्‍ट करना पाप होगा। ध्‍वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूनियन जैक अंग्रेजों के मन में भावनाएं जगाता है जिसकी शक्ति को मापना कठिन है। अमेरिकी नागरिकों के लिए ध्‍वज पर बने सितारे और पट्टियों का अर्थ उनकी दुनिया है। इस्‍लाम धर्म में सितारे और अर्ध चन्‍द्र का होना सर्वोत्तम वीरता का आहवान करता है।"

"हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय मुस्लिम, ईसाई, ज्‍यूस, पारसी और अन्‍य सभी, जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्‍वज को मान्‍यता दें और इसके लिए मर मिटें।"

- महात्‍मा गांधी

 रत्‍येक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र का अपना एक ध्‍वज होता है। यह एक स्‍वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज की अभिकल्‍पना पिंगली वैंकैयानन्‍द ने की थी और इसे इसके वर्तमान स्‍वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जो 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्‍वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व की गई थी। इसे 15 अगस्‍त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्‍चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया। भारत में ‘’तिरंगे’’ का अर्थ भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज है।
भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की प‍ट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्‍वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्‍य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्‍तंभ पर बना हुआ है। इसका व्‍यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।

तिरंगे का विकास

यह जानना अत्‍यंत रोचक है कि हमारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। इसे हमारे स्‍वतंत्रता के राष्‍ट्रीय संग्राम के दौरान खोजा गया या मान्‍यता दी गई। भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा। एक रूप से यह राष्‍ट्र में राजनैतिक विकास को दर्शाता है। हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के विकास में कुछ ऐतिहासिक पड़ाव इस प्रकार हैं:
1906 में भारत का गैर आधिकारिक ध्‍वज
1907 में भीका‍जीकामा द्वारा फहराया गया बर्लिन समिति का ध्‍वज
इस ध्‍वज को 1917 में गघरेलू शासन आंदोलन के दौरान अपनाया गया
इस ध्‍वज को 1921 में गैर अधिकारिक रूप से अपनाया गया
इस ध्‍वज को 1931 में अपनाया गया। यह ध्‍वज भारतीय राष्‍ट्रीय सेना का संग्राम चिन्‍ह भी था।
भारत का वर्तमान तिरंगा ध्‍वज
प्रथम राष्‍ट्रीय ध्‍वज 7 अगस्‍त 1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था जिसे अब कोलकाता कहते हैं। इस ध्‍वज को लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बनाया गया था।
द्वितीय ध्‍वज को पेरिस में मैडम कामा और 1907 में उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था (कुछ के अनुसार 1905 में)। यह भी पहले ध्‍वज के समान था सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपरी की पट्टी पर केवल एक कमल था किंतु सात तारे सप्‍तऋषि को दर्शाते हैं। यह ध्‍वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
तृतीय ध्‍वज 1917 में आया जब हमारे राजनैतिक संघर्ष ने एक निश्चित मोड लिया। डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्‍य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान इसे फहराया। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक और सप्‍तऋषि के अभिविन्‍यास में इस पर बने सात सितारे थे। बांयी और ऊपरी किनारे पर (खंभे की ओर) यूनियन जैक था। एक कोने में सफेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान जो 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में किया गया यहां आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बनाया और गांधी जी को दिया। यह दो रंगों का बना था। लाल और हरा रंग जो दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्‍व करता है। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए।
वर्ष 1931 ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया । यह ध्‍वज जो वर्तमान स्‍वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं था और इसकी व्‍याख्‍या इस प्रकार की जानी थी।
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा। केवल ध्‍वज में चलते हुए चरखे के स्‍थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्‍वज अंतत: स्‍वतंत्र भारत का तिरंगा ध्‍वज बना।

ध्‍वज के रंग

भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्‍य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।

चक्र

इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्‍दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गति‍शील है और रुकने का अर्थ मृत्‍यु है।

ध्‍वज संहिता

26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्‍वज संहिता में संशोधन किया गया और स्‍वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्‍ट‍री में न केवल राष्‍ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्‍ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्‍वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्‍वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्‍ट्रीय ध्‍वज का सामान्‍य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्‍थानों आदि के सदस्‍यों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्‍द्रीय और राज्‍य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्‍वज को किस प्रकार फहराया जाए:

क्‍या करें

  • राष्‍ट्रीय ध्‍वज को शैक्षिक संस्‍थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्‍काउट शिविरों आदि) में ध्‍वज को सम्‍मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्‍वज आरोहण में निष्‍ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
  • किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्‍थान के सदस्‍य द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्‍यथा राष्‍ट्रीय ध्‍वज के मान सम्‍मान और प्रतिष्‍ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
  • नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्‍वज फहराने का अधिकार देना स्‍वीकार किया गया है।

क्‍या न करें

  • इस ध्‍वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्‍त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक फहराया जाना चाहिए।
  • इस ध्‍वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्‍पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
  • किसी अन्‍य ध्‍वज या ध्‍वज पट्ट को हमारे ध्‍वज से ऊंचे स्‍थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्‍वज को वंदनवार, ध्‍वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।

सचिन तेदुलकर अब केवल क्रिकेट के भगवान नही रहे

जिसे 'भगवान' ही मान लिया गया हो, तो फिर कुछ और कहने-सुनने की और मतलब निकालने की वजह ही कहां रह जाती है। सचिन तेदुलकर अब केवल क्रिकेट के भगवान नही रहे, यह शख्सियत इससे कही आगे का सफर तय कर चुकी है। भले ही यह महान क्रिकेटर कहता आया है कि क्रिकेट ही उसका सब कुछ है, लेकिन तेदुलकर ने जो हासिल किया है, वह केवल क्रिकेट के बूते पर ही हासिल नही हो सकता है। वह केवल कीर्तिमानों से भी हासिल नही हो सकता।

गुजरात मेंलौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रमिता का शिलान्‍यास नरेंद्र मोदी ने

modi06भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सरदार साहब को किसी पार्टी से जोड़ना गलत है और हमारा सपना केवल गुजरात के लिए नहीं है। सरदार साहब को किसी दल के साथ जोड़ना बहुत बड़ा अन्‍याय होगा। उनके जीवन की ऊंचाई देश के गौरवकांत से जुड़ा है।

                   गुजरात में पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रमिता (द स्‍टेट्यू ऑफ यूनिटी) का शिलान्‍यास किए जाने के मौके पर मोदी ने कहा कि इस मूर्ति से दुनिया हमारी ओर देखेगी। सरदार साहब ने सबको जोड़ा मगर किसी को नहीं तोड़ा। इस साझी विरासत पर सभी लोगों को गर्व होना चाहिए। आज इस देश को सरदार का सेक्‍युलरिज्‍म चाहिए मगर वोट बैंक वाला सेक्‍युलरिज्‍म नहीं चाहिए।

             मोदी ने कहा कि सरदार सरोवर डैम पटेल का सपना था। आज ऐतिहासिक घटना घट रही है, आज नए संकल्‍प का शिलान्‍यास हो रहा है। पिछले 23 सालों से मैंने ये सपना देखा था। इस कार्य के लिए मुझे कई लोगों ने प्रेरण दी और उनका मैं नमन करता हूं। बुजुर्ग लोगों ने मुझे इसके लिए राह दिखाई। इस मूर्ति के जरिये हम गांव गांव को जोड़ना चाहते हैं।

सरदार सरोवर डैम सरदार पटेल का सपना था। सरदार सरोवर की सुध किसी सरकार ने नहीं ली। नेहरू जी ने सिर्फ शिलान्‍यास किया पर किसी से नहीं सुध ली। डैम की सुरक्षा का पूरा ख्‍याल रखा जाएगा और कोई नुकसान नहीं होगा।
गुजरात के मुख्‍यमंत्री ने कहा कि अब भी हम गुलामी से नहीं निकल पाए हैं। गुलामी की मानसिकता से आज निकलने की जरूरत है। इस मानसिकता ने हमें दबाकर रखा है। आज स्‍वाभिमान के साथ खड़े होने की आवश्‍यकता है। वाजपेयी सरकार के समय दुनिया ने भारत को पहचाना। उस दौरान ये मानसिकता बदली।
हमें भी अपनी ग्‍लोबल पोजिशनिंग बदलनी होगी। हमारा सपना सिर्फ गुजरात के लिए नहीं है। आज राजनीतिक छुआछूत को खत्‍म करने की जरूरत है।

फिल्‍म 'डेढ़ इश्किया में माधुरी दीक्षित का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलेगा

लंबे समय बाद एक बार फिर माधुरी दीक्षित का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलेगा. माधुरी की फिल्‍म 'डेढ़ इश्किया' का फर्स्‍ट लुक रिलीज हो गया है. फिल्‍म में वह खालू जान यानी नसीरूद्दीन शाह के साथ नजर आ रही हैं और उनकी आंखों में आंखें डाले बैठी हुई हैं.
खास यह कि इश्किया में विद्या बालन थीं और इस सीक्वेल में माधुरी दीक्षित. इसलिए हर कोई उनके इस लुक को लेकर बेसब्री से इंतजार कर रहा था. माधुरी के चेहरे में वही कशिश बरकरार है, जिसके लिए उन्हें पहचाना जाता है. वैसे भी लंबे समय बाद वे फिल्मों में वापसी कर रही हैं.
खास यह है कि फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक चौबे ने तो कभी फिल्म के सीक्वल के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन विशाल भारद्वाज ने इसे परदे पर उतारने का काम किया है. अभिषेक कहते हैं, 'मैं एक और इश्किया नहीं बनाना चाहता था. विशाल चाहते थे. मैंने पूछा कि स्टोरी कहां है? फिर काफी बातचीत के बाद आइडिया निकला और फिल्म बनाने का फैसला लिया गया. आप यकीन मानिए कि यह इश्किया से डेढ़ गुणा ज्यादा मजेदार होगी.'

Wednesday 30 October 2013

ये मत समझना हम भूल गए आपको




जब नगमे नही लिखे जाते
जब पैगाम नही भेजे जाते
ये मत समझना हम भूल गए आपको
खयाल तो आता है …. बस अलफाझ नही मिल पाते….!

फिल्म जैकपॉट में सनीलियोन ने भी बिल्कुल उसी अंदाज से अपनी कमीज उतारती हैं, जैसे फिल्‍म 'बूम' में कटरीना ने किया था.

कटरीना के जादू से अभी तक नहीं निकल सके हैं, तभी फिल्म में सनी भी बिल्कुल उसी अंदाज से अपनी कमीज उतारती हैं, जैसे फिल्‍म 'बूम' में कटरीना ने किया था.
                          सनी लियोन की फिल्म जैकपॉट का ट्रेलर रिलीज हो गया है. फिल्म में सनी लियोन ने जमकर सेक्स का छौंक लगाया है. फिल्म के डायरेक्टर कैजाद गुस्ताद हैं, वही कैजाद जिन्होंने बूम के जरिये कटरीना कैफ को 2003 में लॉन्च किया था.
 इसके अलावा, फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और सचिन जोशी भी हैं, लेकिन ट्रेलर में अगर किसी का जलवा नजर आता है तो वह सिर्फ सनी लियोन का है. वे बिकिनी में नजर आ रही हैं, कपड़े उतार रही हैं, धमाल डांस कर रही हैं और एक सेक्स सीन भी है. 'जैकपॉट' 13 दिसंबर को रिलीज होगी. सनी के धमाल के लिए रहें तैयार



मोदी ने कहा, “मित्रों यही धरती है जिस धरती पर चाणक्य पैदा हुए थे

ऐसी कठिन डगर पर चलते हुए अगर नरेंद्र मोदी पटना के गाँधी मैदान से कविता के ज़रिए बताते हैं कि सिकंदर जब दीन-ए-इलाही का बेबाक बेड़ा लेकर विश्वविजय करते हुए हिंदुस्तान आया तो दीन-ए-इलाही के बेड़े को गंगा में डुबो दिया और बिहार के सैनिकों ने उसे परास्त करके भगा दिया.
अब इतिहास के किस विद्वान में है हिम्मत कि वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार से पूछे कि सिकंदर ने दीन-ए-इलाही का प्रचार कब किया था, सर? और किस सन में वो विश्वविजय करके पटना में आया जहाँ उसे बिहार के सैनिकों ने उसे परास्त किया और मार भगाया?
उन्हें इस बात का एहसास था कि मुसलमानों और यादवों की ओर हाथ बढ़ाने से भारतीय जनता पार्टी के अगड़े वोट बैंक पर कहीं ग़लत असर न पड़े. इसलिए उन्होंने प्राचीन भारत के ब्राह्मण कूटनीतिज्ञ चाणक्य का सहारा लिया.
मोदी ने कहा, “मित्रों यही धरती है जिस धरती पर चाणक्य पैदा हुए थे और वो कालखंड हिंदुस्तान का स्वर्णिम कालखंड था. चाणक्य का मंत्र था सबको जोड़ो....”
उन्होंने फिर विश्लेषण किया कि चाणक्य का काल इसलिए स्वर्णिम काल था क्योंकि तब “हिंदुस्तान का मानचित्र सबसे फैला हुआ था”.
पर मोदी के मुताबिक़ “फिर काँग्रेस आई जिसने विभाजन का नारा उठाया, संप्रदाय के नाम पर बार बार तोड़ा. दूसरे आए जिन्होंने जातिवाद का ज़हर फैलाया, तीसरे आए जिसने जाति के भीतर भी जाति पैदा करने का प्रयास किया.
बिहार में फिर से एक बार अगर ‘सवर्ण’ युग लाना है, अगर बिहार को फिर से चाणक्य की उस महान विरासत को हासिल करना है तो हमें जोड़ने की राजनीति करनी पड़ेगी, तोड़ने की राजनीति से देश नहीं चलेगा.”

खुशहाल देश के बर्बाद पत्रकार

पत्रकार उस व्यक्ति को कहते हैं जो समसामयिक घटनाओं, लोगों, एवं मुद्दों आदि पर सूचना एकत्र करता है एवं जनता में उसे विभिन्न माध्यमों की मदद से फैलाता है। इस व्यवसाय या कार्य को पत्रकारिता कहते हैं।

संवाददाता एक प्रकार के पत्रकार हैं। स्तम्भकार  भी पत्रकार हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के सम्पादक, फोटोग्राफर एवं पृष्ठ डिजाइनर आदि भी पत्रकार ही हैं।

एक ऐसी ही उदाहरण हैं। पिछले पांच महीनों से उन्हें पूरी तनख्वाह नहीं मिली है। “मैं सुबह 10 बजे अपने तीन महीने के बच्चे को लेकर ऑफिस आ जाती थी, क्योंकि घर पर उसे संभालने वाला कोई नहीं था। मैं घर वापस करीब रात 10 बजे ही जा पाती थी, इसके बावजूद मुझे अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा ही नसीब होता था, जो महज़ घर का किराया देने में खत्म हो जाता,” अखबार का नाम गुप्त रखने वाली सुश्री डेमा ने बताया। “India  के निजी मीडिया के पत्रकारों में खुशी का अनुपात निराशाजनक है  क्योंकि सारे अखबार 90 फीसदी लाभ के लिए सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर हैं, लिहाज़ा प्रत्येक प्रकाशन में विज्ञापनों की संख्या का हिस्सा स्वाभाविक तौर पर कम होता चला गया, श्री जांगपो ने बताया। लेकिन स्थिति का बद से बदतर होना अभी बाकी था। कुछ सालों के अंदर-अंदर, इस छोटे राष्ट्र में आई आर्थिक मंदी के कारण ये हिस्सा आकार में खुद-ब-खुद कम हो गया। हालांकि कुछ मानते हैं कि इसमें पिछली सरकार का हाथ है। उनका कहना है कि निजी मीडिया ने आरोप-प्रत्यारोप वाली खबरें दिखाईं, तो पिछली सरकार ने बहाना बनाते हुए आर्थिक मंदी को उनके खिलाफ इस्तेमाल किया।

नरेंद्र मोदी की रैली में देश के भविष्य कहे जाने वाले छात्रों ने दस-दस हजार रुपये में रख बम

देश के भविष्य कहे जाने वाले छात्रों ने चंद रुपयों की खातिर लोगों की जान व अपने ईमान का सौदा कर डाला। आतंकियों के हाथ बिके इन छात्रों ने ही नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान रविवार को गांधी मैदान में बम रखे थे। इसका खुलासा पुलिस गिरफ्त में आए इम्तियाज से पूछताछ में हुआ है। उसने एनआइए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) को बताया कि वह और तहसीन अपनी टोली के साथ रांची से 18 बम लेकर पटना आए थे। जहां बमों को रैली स्थल पर लगाने का काम पटना के लॉज में रहकर पढ़ाई करने वाले कुछ छात्रों को दिया था। इसके बदले उन्हें दस-दस हजार रुपये दिए गए थे।
इम्तियाज ने बताया है कि इंडियन मुजाहिदीन ने ही बोधगया ब्लास्ट के बाद पटना में ब्लास्ट की साजिश रची गई थी। बोधगया ब्लास्ट की तरह पटना में भी टाइमर के रूप में लोटस ब्रांडनेम वाली घड़ी का इस्तेमाल किया गया। गांधी मैदान में बम ब्लास्ट से पहले वह तहसीन के साथ कई बार पटना आया। हर बार वे सब्जीबाग, भंवर पोखर और नया टोला स्थित लॉज में ठहरे और उनमें रहने वाले छात्रों को कौम से जुड़ी भड़काऊ सीडी एवं वीडियो दिखा संगठन से जोड़ने का प्रयास किया। रुपये के लोभ में फंसकर आठ छात्र उनके संगठन से जुड़ गए। जिनकी पढ़ाई का खर्चा बाद में आइएम उठाने लगा। हर माह किसी न किसी माध्यम से इन छात्रों तक रुपये पहुंचा दिए जाते थे। जांच एजेंसी ने उन छात्रों के नाम अभी गोपनीय रखे हैं। इम्तियाज ने बताया कि रविवार को भी रांची से पहुंचने पर इन आठ छात्रों को लैपटॉप बैग के साथ मीठापुर बस स्टैंड बुलाया था। जहां सभी के बैग में टाइमर बम रखकर उन्हें बमों को सक्रिय करने की विधि भी बताई गई। सभी छात्रों को आतंकियों ने दस-दस हजार रुपये दिए और गांधी मैदान में बमों को रखने के लिए कहा। एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं सभी बम एक ही बनावट व तरीके के हैं। इम्तियाज के बयान से एनएसजी की इस जांच को बल मिला है कि गांधी मैदान में प्लांट सभी बम इसलिए नहीं फटे क्योंकि उन्हें रखने वालों को सही तरीके से प्रशिक्षण नहीं दिया गया था
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