Wednesday 23 October 2013

परेशान दिमाग समस्याओं का जल्दी समाधान ढूंढ़ता है

मौजूदा दौर में स्कूल से घर जाने के रास्ते में बस में छात्रों के शारीरिक शोषण की खबरें आम होती जा रही हैं। मुंबई जैसे शहरों में तो ऐसे मामले रोजाना बढ़ रहे हैं। इससे निपटने के लिए पहले बसों में महिला कर्मचारियों को तैनात किया गया, लेकिन समस्या का समाधान होने के बजाय ये महिलाएं अपराध में सहभागी बनने लगीं। 

इसके बाद पैरेंट्स-टीचर्स संगठनों ने बस में हर दिन एक पैरेंट के मौजूद रहने की व्यवस्था की, लेकिन इसमें अभिभावकों को बहुत ज्यादा समय देना पड़ता था, जो संभव नहीं था। फिर बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की व्यवस्था की गई। इससे अपराध तो नहीं रुके, लेकिन अपराध होने के बाद की कार्रवाई में सीसीटीवी कैमरे के फुटेज सबूत के रूप में इस्तेमाल किए जाने लगे। सीसीटीवी कैमरे उपयोगी साबित नहीं हो सकते, जब तक कि इसे लाइव देखना संभव हो सके और अपराधी को इस जघन्य अपराध की योजना बनाते समय ही पकड़ा न जा सके। अभिभावकों और शिक्षकों के पास विकल्प खत्म होते जा रहे थे। इसलिए समस्या के समाधान की तलाश में वे एक महीने तक हर सप्ताह मिले। जुहू का उत्पल सांघवी स्कूल बसों में सीसीटीवी कैमरा लगाने वाला मुंबई का पहला ऐसा स्कूल बना, जो इसके लाइव फीड बच्चों के अभिभावकों को मोबाइल फोन पर उपलब्ध कराता है। 


फंडा यह है कि... 

शांत मस्तिष्क के मुकाबले जब मस्तिष्क बेचैन होता है तो वह ज्यादा तेजी से समस्याओं का समाधान तलाशता है। कोई आश्चर्य नहीं कि हर नियोक्ता अपने कर्मचारियों को थोड़ा-बहुत असुविधाजनक हालत में बनाए रखता है ताकि वे उसकी व्यावसायिक जरूरतों का तेजी से समाधान ढूंढ़ सकें। यदि आपके बॉस भी आपको थोड़ा असहज बनाते हैं तो इसके लिए उन्हें दोषी न ठहराएं। यह तो उनका धर्म है क्योंकि वे आपसे सर्वश्रेष्ठ नतीजे चाहते हैं।
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