Wednesday 23 October 2013

आमिर खान ने जब से 'थ्री इडियट्स' फिल्म बनाई है, तब से सैकड़ों बार यह सुझाव हर कहीं से मिल जाता है कि जो दिल कहे वह करो।

बच्चों को उनकी पसंद का काम करने से न रोकें। बच्चों की पसंद, नापसंद का ध्यान रखकर उनकी शिक्षा की योजना बनाएं। आज की तारीख में नए प्रोफेशन ऐसे ढेरों रास्ते बना रहे हैं जिनके बारे में माता?पिता को पता भी नहीं होता। 

आमिर खान ने जब से 'थ्री इडियट्स' फिल्म बनाई है, तब से सैकड़ों बार यह सुझाव हर कहीं से मिल जाता है कि जो दिल कहे वह करो। इसके बावजूद हजारों, लाखों युवाओं को ऐसे कोर्स करने के लिए मजबूर किया जाता है, जो कभी?कभार ही उनकी क्षमता के अनुरूप होते हैं। अगर आप लड़के हैं तो इंजीनियर बनने के लिए कहा जाता है। लड़की हैं तो डॉक्टर। देश के ज्यादातर परिवारों की यह कहानी है। 

दबाव का आलम यह है कि आईआईटी जैसे संस्थानों में प्रवेश मिल जाने के बावजूद छात्र जानलेवा कदम उठा रहे हैं। मीडिया में इस तरह की ढेरों कहानियां आती हैं। यह समय युवाओं के लिए उच्च शिक्षा में उनका भविष्य और दिशा तय करने के नजरिये से फिर अहम होने वाला है। ऐसे में हम एक कहानी उनके सामने रख रहे हैं, जो युवा छात्रों के पक्ष को मजबूत बनाती है। 

अगर किसी का बेटा दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो जाता है तो उसके माता?पिता को देश की सेवा के रूप में कुछ सांत्वना मिल सकती है। लेकिन कोई सांप को बचाते हुए अपना बेशकीमती जीवन खत्म कर रहा हो तो निश्चित ही उसे वाह?वाही नहीं मिलेगी। इसके बावजूद बेंगलुरू के एमईएस कॉलेज मल्लेश्वरम में पढऩे वाले 19 साल के दो लड़कों के लिए जानवरों को बचाने और उनका संरक्षण सब कुछ है। संदीप जी. और अजय प्रभु पार्टटाइमर के तौर पर फॉरेस्ट सेल से जुड़े हुए हैं। पिछले एक साल में ये दोनों 200 सांप, 100 पक्षी और 20 अन्य जानवरों को बचा चुके हैं। 

खतरनाक सांपों और जंगली जानवरों के बीच काम करने के बारे में कोई शायद ही सोचे। लेकिन इन दोनों के लिए यही सब कुछ है। वे न सिर्फ जानवरों की प्रजातियों को बचाते हैं बल्कि लोगों के बीच इनके बारे में जागरुकता लाने की कोशिश भी कर रहे हैं। वे जितना इन जानवरों के बारे में पढ़ते हैं, उतनी ही उनसे जुड़ी हुई भ्रांतियां दूर होती जाती हैं। वे जानवरों के व्यवहार को लेकर अधिक आत्मविश्वास से भरते जाते हैं। संदीप नेलामंगला उपनगर में रहते हैं। 

उन्होंने एक बार एक पक्षी को बचाकर उसे अपने दोस्त को दे दिया था। उनका वह दोस्त तीन साल से फॉरेस्ट सेल में काम कर रहा था। उसी ने संदीप का परिचय भी उस सेल से कराया था। इसके बाद से वे लगातार अपनी पसंद के इस काम को करते जा रहे हैं और उनकी वन्य जीवन के प्रति रुचि भी बढ़ती जा रही है। करीब एक साल बाद वे अजय से मिले। अजय को सबसे पहले जानवरों को पहचानने का काम मिला। उन्हें देखने को कहा गया कि उनके सीनियर जानवरों को किस तरह से बचाते हैं। 

वे सप्ताह के आखिरी दिनों में कॉलेज के बाद दोपहर में या छुट्टियों में या स्टडी लीव के दौरान जानवरों के संरक्षण का काम करते हैं। कभी?कभी आम लोग इन्हें सीधे फोन कर देते, तो कभी फॉरेस्ट सेल से किसी जानवर को बचाने के लिए कॉल आ जाती है। इन्होंने अब तक दुर्लभ किस्म के सांप, चमगादड़, खरगोश, कछुए वगैरह बचाए हंै। वे यह काम मु?त में करते हैं। अगर जानवर स्वस्थ होते हैं तो वे उन्हें जंगल में छोड़ देते हैं। अगर उन्हें कोई परेशानी होती है तो पुर्नवास केंद्र में ले जाते हैं। अजय को तो उसके परिवार से समर्थन मिलता है। लेकिन संदीप के माता?पिता उसके इस काम पर अकसर नाराज हो जाते हैं। इसकी वजह से जब भी वह अपने काम पर जाता है तो उसे अपने माता- पिता से झूठ बोलना पड़ता है। लेकिन उसे इसका कोई अफसोस नहीं है, क्योंकि वह अपने जुनून के लिए ऐसा करता है। 

इसी जुनून की वजह से वे दोनों सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन नामक एनजीओ से भी जुड़ गए हैं और इसी संस्था के जरिये वे अब लोगों को एक कदम आगे बढ़ते हुए शिक्षित कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि सांप काटने पर कैसे, क्या करना चाहिए। वे अक्सर देखते हैं कि लोग सांप के काटने को लेकर या ऐसे ही किसी दूसरी चीजों के प्रति अंधविश्वास के शिकार हैं। ये दोनो उसे दूर करने की कोशिश करते हैं। मौके पर किसी भी वक्त शहर के किसी भी कोने में पहुंच जाते हैं। उनकी यही बात उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना रही है।
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