Wednesday 23 October 2013

पाकिस्तान में चेन्नई एक्सप्रेस पर प्रतिबंध लगा और फिल्म वीरजारा की लोकप्रियता को नहीं रोक पाए। इस फिल्म में भी शाहरूख हीरो हैं।

पाकिस्तान के फिल्म वितरकों ने शाहरूख खान अभिनीत फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह ईद के मौके पर आठ अगस्त को रिलीज होने वाली है। लेकिन वे सबीना मुस्तफा के जीवन पर बनी फिल्म वीरजारा की लोकप्रियता को नहीं रोक पाए। इस फिल्म में भी शाहरूख हीरो हैं। 
 
सबीना मुस्तफा का जन्म कोलकाता में हुआ था। वह शिक्षण से संबंधित एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में पाकिस्तान के कराची शहर गई थी। यहां उनकी मुलाकात फ्लाइट लेफ्टिनेंट सईद सफी मुस्तफा से हुई। दोनों के बीच प्यार हुआ और उन्होंने शादी कर ली। वे कराची में ही बस गए। 
 
अन्य नए शादीशुदा जोड़ों की तरह ही उन्होंने भी एक दूसरे से कुछ वादे किए। इसमें पहला वादा था कि वे गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोलेंगे। दूसरा वादा था कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाएंगे और तीसरा वादा था कि सईद नहीं भी रहे तो सबीना अपनी जीवन यात्रा जारी रखेंगी। स्कूल चलाएंगी। बेटे जेन के जन्म तक सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन इसके दो माह बाद ही 1971 में भारत-पाक युद्ध छिड़ गया। फ्लाइट लेफ्टिनेंट सफी लापता हो गए और उन्हें मृत मान लिया गया। 21 साल की उम्र में सबीना को विधवा होने का दंश झेलना पड़ा। 
 
इस अपार दुख की घड़ी में उसने अपने पति से किए वादे को याद रखा। वह अपने जीवन को फिर व्यवस्थित करने में जुट गई। उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पाकिस्तान एयरफोर्स के मसरूर बेस पर एक शिक्षिका के रूप में पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्हें 175 रुपए मासिक वेतन मिलता था। 
 
उन्होंने अकेली मां के रूप में अपने पति की पेंशन, वीरता पुरस्कार और सैनिकों को मिलने वाली जमीन हासिल करने के लिए भी संघर्ष किया। 1975 में उन्हें कराची में सऊदी एयरलाइंस में नौकरी मिल गई। सबीना और उनका बेटा एक बेडरूम के अपार्टमेंट में रहते थे। उन्होंने इसके बाद सरकार से मिली जमीन को बेचकर करांची में एक मकान खरीद लिया। 
 
अगले 25 साल उन्होंने बेटे जेन का करियर बनाने पर ध्यान दिया और उसे आर्किटेक्ट के रूप में स्थापित कर दिया। उन्होंने अपने स्वर्गीय पति से किए दोनों वादों को पूरा कर लिया था। लेकिन तीसरा वादा 1999 तक पूरा नहीं हुआ इस बीच उन्हें मालूम पड़ा कि उनकी आया की बेटी को एक सिलाई स्कूल ने सिर्फ इसलिए एडमिशन देने से इनकार कर दिया था कि वह अनपढ़ थी। 
 
सबीना ने उसे पढ़ाने की ठानी। उसने अपने घर के गैराज को साफ करके उसे ही स्कूल बना दिया। अगले कुछ दिनों में उनके स्कूल का प्रचार हो गया। स्कूल में 14 बच्चे पढऩे-लिखने के लिए आने लगे। उनके दोस्तों ने स्कूल के बच्चों को पेंसिल और कॉपियां दान में दी। नेसले, पाकिस्तान ने इन बच्चों को भोजन देना शुरू कर दिया। स्कूल में सबीना ने बच्चों को जीवन के चार 'त' तालीम, तरबीयत, तौर, तरीका की शिक्षा दी। उनको यकीन था कि इनका पालन करने से पांचवां 'त' तरक्की हासिल होगी। 
 
एक साल बाद स्कूल में 75 छात्र हो गए। घर के गैराज के बाहर दो नए क्लास शुरू किए गए। इसमें स्वयंसेवी शिक्षक सुबह से दोपहर तक पांच शिफ्टों में सप्ताह में पांच दिन पढ़ाते थे। उनके सामने चुनौती थी कि इन बच्चों को स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के माध्यम से बेहतर शिक्षा किस तरह दें ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। 
 
सबीना मुस्तफा 63 साल की हो चुकी हैं। वे पिछले 14 वर्षो में 600 बच्चों को शिक्षित कर चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या गंदी बस्तियों में रहने वाली लड़कियों की है। जो कराची में उनके घर क्लिफटन रोड के पास की शाह रसूल और नीलम कालोनी में रहती थी। उनके घरेलू नौकर का बेटा 19 साल का मोहम्मद असद अगले साल एयरोनाटिकल इंजीनियर बनने वाला है। वह गैराज के स्कूल का छात्र है। वह वल्र्ड मैथ्स चैंपियनशिप और नेशनल रोबोटिक्स चैंपियनशिप में रनर्स अप रहा। गैराज में पढऩे वाले एक लड़के के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। मोहम्मद का एयरोनाटिक्स इंजीनियर बनने का सपना सच होने के साथ सबीना भी अपने पति मुस्तफा के सपने को सच होते देख रही हैं। 
 
फंडा यह है कि... 
 
अगर आप जीवन की नींव को मजबूत खंभों पर रखते हैं तो बहुमंजिला इमारत बनाना आसान हो जाता है। जीवन के चार खंभे तालीम, तरबीयत, तौर और तरीक हैं। इनके पीछे तरक्की अपने आप आती है।
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